दक्षिण कालिका के मन्त्र और पूजा विधि


भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरुप, अनेक मन्त्र तथा अनेक उपासना विधियां है। यथा-श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली) गुह्म काली, भद्रकाली, महाकाली आदि । दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिण कालीका) की उपासना की जाती है।

दक्षिण कालिका के मन्त्र :

भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र है, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।
(1) क्रीं,
(2) ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं।
(3) ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
(4) नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
(5) नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।
(6) क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा। इनमें से कीसी भी मन्त्र का जप किया जा सकता है।

पूजा -विधि:

दैनिक कृत्य स्नान-प्राणायम आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर, सामान्य पूजा-विधि से काली- यन्त्र का पूजन करें। तत्पश्चात ॠष्यादि- न्यास एंव करागन्यास करके भगवती का इस प्रकार ध्यान करें:

शवारुढां महाभीमां घोरदृंष्ट्रां वरप्रदाम्।
हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृकाकराम्।
मुक्त केशी ललजिह्वां पिबंती रुधिरं मुहु:।
चतुर्बाहूयुतां देवीं वराभयकरां स्मरेत्॥”

इसके उपरान्त मूल-मन्त्र द्वारा व्यापक-न्यास करके यथा विधि मुद्रा-प्रदर्शन पूर्वक पुनः ध्यान करना चाहिए।

पुरश्चरण :

कालिका मन्त्र के पुरश्चरण में दो लाख की संख्या में मन्त्र-जप किया है। कुछ मन्त्र केवल एक लाख की संख्या में भी जपे जाते है। जप का दशांश होम घृत द्वारा करना चाहिए । होम का दशांश तर्पण, तर्प्ण का दशांश अभिषेक तथा अभिषेक का दशांश ब्राह्मण – भोजन कराने का नियम है।

विशेष: 

”दक्षिणा कालिका” देवी के मन्त्र रात्रि के समय जप करने से शीघ्र सिद्धि प्रदान करते है। जप के पश्चात स्त्रोत, कवच, ह्रदय आदि उपलब्ध है, उनमें से चाहें जिनका पाठ करना चाहिए । वे सभी साधकों के लिए सिद्धिदायक है।

गृह बाधा शान्ति शाबर मन्त्र


यह मंत्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में साधक की रक्षा करता है । कोई भी व्यक्ति इसे सिद्ध करके स्वयं को सुरक्षित कर सकता है । जिसने इसे सिद्ध कर लिया हो, ऐसा व्यक्ति कहीं भी जाए, उसको किसी प्रकार की शारीरिक हानि की आशंका नहीं रहेगी । केवल आततायी से सुरक्षा ही नहीं, बल्कि रोग-व्याधि से मुक्ति दिलाने में भी यह मंत्र अद्भुत प्रभाव दिखाता है । इसके अतिरिक्त किसी दूकान या मकान में प्रेत-बाधा, तांत्रिक-अभिचार प्रयोग, कुदृष्टि आदि कारणों से धन-धान्य, व्यवसाय आदि की वृद्धि न होकर सदैव हानिकारक स्थिति हो, ऐसी स्थिति में इस मंत्र का प्रयोग करने से उस द्थान के समस्त दोष-विघ्न और अभिशाप आदि दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं ।

मन्त्रः

“ॐ नमो आदेश गुरु को। ईश्वर वाचा अजपी बजरी बाड़ा, बज्जरी में बज्जरी बाँधा दसौं दुवार छवा और के घालो तो पलट बीर उसी को मारे । पहली चौकी गणपति, दूजी चौकी हनुमन्त, तिजी चौकी भैंरो, चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवे श्री नरसिंह देवजी । शब्द साँचा पिण्ड काँचा, ऐ वचन गुरु गोरखनाथ का जुगोही जुग साँचा, फुरै मन्त्र ईशवरी वाचा ।”

विधिः

इस मंत्र को मंत्रोक्त किसी भी एक देवता के मंदिर में या उसकी प्रतिमा के सम्मुख देवता का पूजन कर २१ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जप कर सिद्ध करें ।

प्रयोगः

साधक कहीं भी जाए, रात को सोते समय इस मंत्र को पढ़कर अपने आसन के चारों ओर रेखा खींच दे या जल की पतली धारा से रेखा बना ले, फिर उसके भीतर निश्चित होकर बैठे अथवा सोयें ।

रोग व्याधि में इस मंत्र को पढ़ते हुए रोगी के शरीर पर हाथ फेरा जाए तो मात्र सात बार यह क्रिया करने से ही तत्काल वह व्यक्ति व्याधि से मुक्त हो जाता है ।

घर में जितने द्वार हो उतनी लोहे की कील लें । जितने कमरे हों, प्रति कमरा दस ग्राम के हिसाब से साबुत काले उड़द लें । थोड़ा-सा सिन्दूर तेल या घी में मिलाकर कीलों पर लगा लें । कीलों और उड़द पर 7-7 बार अलग-अलग मंत्र पढ़कर फूंक मारकर अभिमंत्रित कर लें । व्याधि-ग्रस्त घर के प्रत्येक कमरे या दुकान में जाकर मंत्र पढ़कर उड़द के दाने सब कमरे के चारों कोनों में तथा आँगन में बिखेर दें और द्वार पर कीलें ठोक दें ।

बालक या किसी व्यक्ति को नजर लग जाए, तो उसको सामने बिठाकर मोरपंख या लोहे की छुरी से मंत्र को सात बार पढ़ते हुए रोगी को झाड़ना चाहिए । यह क्रिया तीन दिन तक सुबह-शाम दोनों समय करें ।

क्या है बंधन और कैसे पायें इनसे मुक्ति ? नजर कैसे उतारें ?


क्या हैं बंधन और उनके उपाय?

बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख…

मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।

किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ?

किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?

कोई परिवार संपन्न है। बच्चे ऐश्वर्यवान, विद्यावान व सर्वगुण संपन्न हैं। उनकीसज्जनता का उदाहरण सारा समाज देता है। बच्चे शादी के योग्य हो गए हैं, फिर भी उनकी शादी में अनावश्यक रुकावटें आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है?

आपके पड़ोस के एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ?

हमारे घर के पास हरा भरा फल-फूलों से लदा पेड़ है। पक्षी उसमें चहचहा रहे हैं। इस वृक्ष से हमें अच्छी छाया और हवा मिल रही है। अचानक वह पेड़ बिना किसी कारण के जड़ से ही सूख जाता है। निश्चय ही हमें भय की अनुभूति होगी और मन में यह प्रश्न उठेगा कि ऐसा क्यों हुआ?

हमें अक्सर बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाएंगे जो हमारी और हमारे आसपास की व्यवस्था को झकझोर रहे होंगे, जिनमें क्यों” की स्थिति उत्पन्न होगी। विज्ञान ने एक नियम प्रतिपादित किया है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमें निश्चय ही मनन करना होगा कि उपर्युक्त घटनाएं जो हमारे आसपास घटित हो रही हैं, वे किन क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं हैं? हमें यह भी मानना होगा कि विज्ञान की एक निश्चित सीमा है। अगर हम परावैज्ञानिक आधार पर इन घटनाओं को विस्तृत रूप से देखें तो हम निश्चय ही यह सोचने पर विवश होंगे कि कहीं यह बंधन या स्तंभन की परिणति तो नहीं है ! यह आवश्यक नहीं है कि यह किसी तांत्रिक अभिचार के कारण हो रहा हो। यह स्थिति हमारी कमजोर ग्रह स्थितियों व गण के कारण भी उत्पन्न हो जाया करती है। हम भिन्न श्रेणियों के अंतर्गत इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इनके अलग-अलग लक्षण हैं। इन लक्षणों और उनके निवारण का संक्षेप में वर्णन यहां प्रस्तुत है:

  • कार्यक्षेत्र का बंधन, स्तंभन या रूकावटें
  • दुकान/फैक्ट्री/कार्यस्थल की बाधाओं के लक्षण
  • किसी दुकान या फैक्ट्री के मालिक का दुकान या फैक्ट्री में मन नहीं लगना।
  • ग्राहकों की संख्या में कमी आना।
  • आए हुए ग्राहकों से मालिक का अनावश्यक तर्क-वितर्क-कुतर्क और कलह करना।
  • श्रमिकों व मशीनरी से संबंधित परेशानियां।
  • मालिक को दुकान में अनावश्यक शारीरिक व मानसिक भारीपन रहना।
  • दुकान या फैक्ट्री जाने की इच्छा न करना।
  • तालेबंदी की नौबत आना।
  • दुकान ही मालिक को खाने लगे और अंत में दुकान बेचने पर भी नहीं बिके।
  • कार्यालय बंधन के लक्षण
  • कार्यालय बराबर नहीं जाना।
  • साथियों से अनावश्यक तकरार।
  • कार्यालय में मन नहीं लगना।
  • कार्यालय और घर के रास्ते में शरीर में भारीपन व दर्द की शिकायत होना।
  • कार्यालय में बिना गलती के भी अपमानित होना।
  • घर-परिवार में बाधा के लक्षण
  • परिवार में अशांति और कलह।
  • बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना।
  • आर्थिक परेशानियां।
  • योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
  • विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना।
  • परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
  • घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
  • इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना।
  • भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
  • पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
  • व्यक्ति विशेष का बंधन
  • हर कार्य में विफलता।
  • हर कदम पर अपमान।
  • दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
  • घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना।
  • शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना।

हमें मानना होगा कि भगवान दयालु है। हम सोते हैं पर हमारा भगवान जागता रहता है। वह हमारी रक्षा करता है। जाग्रत अवस्था में तो वह उपर्युक्त लक्षणों द्वारा हमें बाधाओं आदि का ज्ञान करवाता ही है, निद्रावस्था में भी स्वप्न के माध्यम से संकेत प्रदान कर हमारी मदद करता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम होश व मानसिक संतुलन बनाए रखें। हम किसी भी प्रतिकूल स्थिति में अपने विवेक व अपने इष्ट की आस्था को न खोएं, क्योंकि विवेक से बड़ा कोई साथी और भगवान से बड़ा कोई मददगार नहीं है।

क्या होता हें उतारा करना

उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं।
उतारा करने की विधि :

उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है। उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है।

किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है :

  • रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए।
  • सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय को खिला दें।
  • मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू कुत्ते को खिला दें।
  • बुधवार को इमरती से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिला दें।
  • गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।
  • शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें।
  • शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें।

इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं।

नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल की रूई की बाती, जायफल, उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों, पीली सरसों मेहंदी, काले तिल, सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब, दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल, लौंग, नीम के पत्तों की धूनी आदि का प्रयोग किया जाता है।

स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें। पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं। रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें।

बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें।

उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें।

इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके जीवन को तबाह कर सकती है। नजर दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।

बीज मन्त्रों के रहस्य



शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र कहे हैं, आइये बीज मन्त्रों का रहस्य जाने: 

१--क्रीं--इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार] क--काली, र--ब्रह्मा, ईकार--दुःखहरण! 
अर्थ--ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे!

२--श्रीं----चार स्वर व्यंजन---[श, र, ई, अनुसार]=श--महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई-- तुष्टि, अनुस्वार-- दुःखहरण! 
अर्थ---धन- ऐश्वर्य सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लाष्मी मेरे दुखों का नाश कर!

३--ह्रौं---[ह्र, औ, अनुसार] ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण!
अर्थ--शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें!

४--दूँ ---[ द, ऊ, अनुस्वार]--द- दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना!
अर्थ-- माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो! यह दुर्गा बीज है!

५--ह्रीं --यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है!
[ह,र,ई,नाद, बिंदु,]---ह-शिव, र-प्रकृति,ई--महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता!
अर्थ--शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करे!

६--ऐं--[ऐ, अनुस्वार]-- ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण!
अर्थ--- हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश कर!

७--क्लीं-- इसे काम बीज कहते हैं![क, ल,ई अनुस्वार]--क--कृष्ण अथवा काम,ल--इंद्र,ई--तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता!
कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें!

८--गं--यह गणपति बीज है![ग, अनुस्वार] ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहरता!
अर्थ-- श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें!

९--हूँ--[ ह, ऊ, अनुस्वार]--ह--शिव, ऊ-- भैरव, अनुस्वार-- दुःखहरता]
यह कूर्च बीज है!
अर्थ--असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें!

१०--ग्लौं--[ग,ल,औ,बिंदु]--ग-गणेश, ल--व्यापक रूप, आय--तेज, बिंदु-दुखहरण!
अर्थात--व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें! 

११--स्त्रीं--[स,त,र,ई,बिंदु]--स--दुर्गा, त--तारण, र--मुक्ति, ई--महामाया, बिंदु--दुःखहरण!
अर्थात--दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें!

१२--क्षौं--[क्ष,र,औ,बिंदु] क्ष--नरीसिंह, र--ब्रह्मा, औ--ऊर्ध्व, बिंदु--दुःख-हरण!
अर्थात--ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों कू दूर कर!

१३--वं--[व्, बिंदु]--व्--अमृत, बिंदु- दुःखहरता! [इसी प्रकार के कई बीज मन्त्र हैं] [शं-शंकर, फरौं--हनुमत, दं-विष्णु बीज, हं-आकाश बीज,यं अग्नि बीज, रं-जल बीज, लं- पृथ्वी बीज, ज्ञं--ज्ञान बीज, भ्रं भैरव बीज! 
अर्थात--हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण कर!

१४--
कालिका का महासेतु---क्रीं
त्रिपुर सुंदरी का महासेतु--ह्रीं
तारा का हूँ
षोडशी का स्त्रीं
अन्नपूर्णा का श्रं
लक्ष्मी का श्रीं


Feel Separation from the Physical Body

During the course of meditation, one day you will feel that you have separated yourself from the body. You will have immense joy mixed with fear; joy in the possession of a new light, astral body; and fear owing to the entry in a foreign, unknown plane. At the very outset, the new consciousness is very rudimentary in the new plane, just as in the case of a pup with newly opened eyes on the eighth or tenth day on the physical plane. You will feel that you have a light air body and perceive a rotating, vibratory, limited, astral atmosphere with illumination of golden lights, objects, beings, etc. You may feel that you are rotating or floating in the air and consequently there is fear of a fall.

You will never drop down, but the new experience of subtlety generates novel feeling and sensations in the beginning. How you leave the body, remains unknown at the outset. You are suddenly startled, when you have completely separated, and when you enter into the new plane, some times with a blue- colored sphere around, sometimes with partial illumination mixed with darkness, while at other times with extremely brilliant, golden, yellow, defused illumination. The new joy is inexpressible and indescribable in words. You will have to actually feel and experience it yourself (Anubhava). You are unaware of how you left the body, but you are fully conscious of your returning. You gently feel as if you enter smoothly, gently through a small hole or fine tube with an airy, ethereal feeling. Just as air enters through the crevices of a window, you enter with the new astral body back into the physical body.

I think I have expressed the idea lucidly. When you have returned. You can clearly differentiate the life in the gross and subtle planes. There is an intense craving to regain the new consciousness and to remain in the state always. You are not able to stay for a period of longer than five to ten minutes in the new region. Further, you can, in the beginning, hardly leave the body at will, through simple willing. By chance , through efforts, you are able to separate from the body once in a month in the course of sadhana. If you plod on with patience, perseverance and firmness, you will be able to leave the body at will and stay in the new plane for longer period with the new subtle body. You are quite safe from identification with the body. You have made conquest of Deha-Adhyasa, only if you can leave the body at will and stay in the new region for a long time, say for two to three hours. Your position will be quite secure only then. The practice of mauna and steady regular meditation is absolutely necessary to achieve this end. After continuous hard practice, you will be able to separate yourself from the body very frequently. As soon as you silence the thoughts and calm the mind, the mental habit of sleeping from the physical body supervenes automatically. There will be no difficulty then. 

Lalleshwari


Lalleshwari (1320–1392) was a mystic of the Kashmiri Shaivite sect. She was a creator of the mystic poetry called vatsun or Vakhs, literally "speech". Known as Lal Vakhs, her verses are the earliest compositions in the Kashmiri language and are an important part in history of Kashmiri literature. She inspired some of the later Sufis of Kashmir.

She is also known by various other names, including Lal Ded, Lalla, Lal Diddi, Laleshwari, Lalla Yogishwari and Lalishri.

Life:

Lalleshwari was born in Pandrethan (ancient Puranadhisthana) some four and a half miles to the southeast of Srinagar in a Kashmiri Pandit family. She married at age twelve, but her marriage was unhappy and she left home at twenty-four to take sanyas (renunciation) and become a disciple of the Shaivite guru Siddha Srikantha (Sed Bayu). She continued the mystic tradition of Shaivism in Kashmir, which was known as Trika before 1900.

Literary works:

Her poems (called vakhs) have been translated into English by Richard Temple, Jaylal Kaul, Coleman Barks, Jaishree Odin, and Ranjit Hoskote.

An example of Lal Vakh in Kashmiri:

yi yi karu'm suy artsun
yi rasini vichoarum thi mantar
yihay lagamo dhahas partsun
suy Parasivun tanthar

English translation:

Whatever work I did became worship of the Lord;
Whatever word I uttered became a prayer;
Whatever this body of mine experienced became
the sadhana of Saiva Tantra
illumining my path to Parmasiva.

Legacy:

The leading Kashmiri Sufi figure, Sheikh Noor-ud-din Wali, also known as Nooruddin Rishi or Nunda Rishi, was highly influenced by Lal Ded. One Kashmiri folk story recounts that as a baby, Nunda Rishi refused to be breast-fed by his mother. It was Lal Ded who breast-fed him.

Lal Ded and her mystic musings continue to have a deep impact on the psyche of Kashmiri common man, and the 2000 National Seminar on her held at New Delhi led to the release of the book Remembering Lal Ded in Modern Times. A solo play in English, Hindi and Kashmiri titled 'Lal Ded' (based on her life), has been performed by actress Mita Vashisht all over India since 2004.

Shri Ramakrishna Paramahansa and Maa Kali


"1008 SRI RAMAKRISHNA PARAMAHANSA and LORD MOTHER KALI MA." " One cannot see separateness in burning sensation and fire, sun and its rays or ghee in the milk." " They are one integral whole. Creation, sustenance and dissolution; the living beings and the universe are Shakti Lila(Divine Sports of Divine Power) reduced to an illusion." " The formless Brahman alone is the truth while Shakti is a fleeting dream." " Sri Ramakrishna Paramahamsa saw Brahman as Kali Ma and Kali Ma as Brahman(Lord,God)." " It is an integrated, inseparable Whole. ‘Kali here, Kali there and Kali everywhere’ the Paramahamsa said." "He experienced Ma(Lord Goddess& HER Divine Power) in both absolute and the ephemeral." " Thus he pierced the misconception as considering Ma or the primeval power as unreal, deeming Brahman alone as eternal truth." “When She is inactive neither creating, nor preserving, nor destroying, I call Her Brahman." " When She performs Her loving activities, I call her Shakti. The Being is the same, only the names and forms are different” he said." " Being in spiritual ecstasy since young, he looked upon Ma Kali as the Lord Mother of the Universe." " He was the living proof as Ma too never failed him in giving the world a mixture of man and god. May Ma Kali bless all her children. Have a pleasant day ahead." Namaste♥ ॐ♥Pranam♥ ॐ♥Namaskar"The PURE KNOWLEDGE of VEDANTA" ♥ ॐ♥ "OM"="MA'♥ ॐ♥ "In Sanskrit the letter "M" means "SHIVA" or the "ADHYATAMA-BHAVA,the alphabet letter "A" means "BRAHMA"(LORD),the creator." "This Rule is Applicable to Every One." "One thing should be remembered: Every step we take has a relationship to SOCIAL and EXTERNAL Codes of CONDUCT(Charity, Purity, Unity and Divinity) & Spirituality." "Evolution of Life to GOD realization is the work of every one's individual efforts and is in fact the real EVOLUTION." "Every Child when born and even animal offspring CRY "MA",. " "The sound commences with 'M' and ends with 'A'. The sound "MA"means MOTHER." "In Sanskrit the letter "M" means "SHIVA" or the "ADHYATAMA-BHAVA,the alphabet letter "A" means "BRAHMA"(LORD),the creator." "The sound therefore denotes CREATION." "The same sound reversed sounds "OM",a syllable repetition of which leads to REALIZATION of GOD,or AWAKENS EVOLUTION." "All sounds and voices with or without a meaning originate from that very source.Therefore,Scriptures declare that word is God (Shabda Brahma)." "Even St.John says in the Bible,""In the beginning was the word,the word was with God and the word was God." "That word was no other than "OM",assert the Vedas."OM" is a compound of three letters A+U+M." "OM is an all-pervading sound like GOD and is apparently hidden behind every sound." "A is the first of the alphabets and the first and the foremost of all vowels.It is such,necessary for the utterance of every sound." "A Baby or a Dumb person or animals only capable of producing simply vibrations of vocal organ in the throat or larynx would simply utter "A"; then with the different motions of the tongue sound of other letters clothe the sound of the unclad "A". No sound is utterable without the sound of "A" at its end or (not ending with) any other vowel."A" is the first vowel of the sound;then follow e,i,o,u." "Thus"OM" serves as a background for all spoken words or unspoken sounds,therefore it is called "SHABDA -BRAHMA",LOGOS,the word of God incarnate." "Self- Introspection " must also be embraced as indispensable part of SOCIAL CONDUCTIVITY, RELIGIOSITY,SPIRITUALITY." "Elimination of ILLUSION & Misconception is the GOAL of Social Conductivity,Religiosity & Spirituality i.e. Guru Tattwa,Prarabdha."