बीज मन्त्रों के रहस्य



शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र कहे हैं, आइये बीज मन्त्रों का रहस्य जाने: 

१--क्रीं--इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार] क--काली, र--ब्रह्मा, ईकार--दुःखहरण! 
अर्थ--ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे!

२--श्रीं----चार स्वर व्यंजन---[श, र, ई, अनुसार]=श--महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई-- तुष्टि, अनुस्वार-- दुःखहरण! 
अर्थ---धन- ऐश्वर्य सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लाष्मी मेरे दुखों का नाश कर!

३--ह्रौं---[ह्र, औ, अनुसार] ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण!
अर्थ--शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें!

४--दूँ ---[ द, ऊ, अनुस्वार]--द- दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना!
अर्थ-- माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो! यह दुर्गा बीज है!

५--ह्रीं --यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है!
[ह,र,ई,नाद, बिंदु,]---ह-शिव, र-प्रकृति,ई--महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता!
अर्थ--शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करे!

६--ऐं--[ऐ, अनुस्वार]-- ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण!
अर्थ--- हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश कर!

७--क्लीं-- इसे काम बीज कहते हैं![क, ल,ई अनुस्वार]--क--कृष्ण अथवा काम,ल--इंद्र,ई--तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता!
कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें!

८--गं--यह गणपति बीज है![ग, अनुस्वार] ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहरता!
अर्थ-- श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें!

९--हूँ--[ ह, ऊ, अनुस्वार]--ह--शिव, ऊ-- भैरव, अनुस्वार-- दुःखहरता]
यह कूर्च बीज है!
अर्थ--असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें!

१०--ग्लौं--[ग,ल,औ,बिंदु]--ग-गणेश, ल--व्यापक रूप, आय--तेज, बिंदु-दुखहरण!
अर्थात--व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें! 

११--स्त्रीं--[स,त,र,ई,बिंदु]--स--दुर्गा, त--तारण, र--मुक्ति, ई--महामाया, बिंदु--दुःखहरण!
अर्थात--दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें!

१२--क्षौं--[क्ष,र,औ,बिंदु] क्ष--नरीसिंह, र--ब्रह्मा, औ--ऊर्ध्व, बिंदु--दुःख-हरण!
अर्थात--ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों कू दूर कर!

१३--वं--[व्, बिंदु]--व्--अमृत, बिंदु- दुःखहरता! [इसी प्रकार के कई बीज मन्त्र हैं] [शं-शंकर, फरौं--हनुमत, दं-विष्णु बीज, हं-आकाश बीज,यं अग्नि बीज, रं-जल बीज, लं- पृथ्वी बीज, ज्ञं--ज्ञान बीज, भ्रं भैरव बीज! 
अर्थात--हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण कर!

१४--
कालिका का महासेतु---क्रीं
त्रिपुर सुंदरी का महासेतु--ह्रीं
तारा का हूँ
षोडशी का स्त्रीं
अन्नपूर्णा का श्रं
लक्ष्मी का श्रीं


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