।।श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् ।।
प्रथमं तु महाज्वालो द्वितीयं उग्र केसरी।
वज्रनखस्तृतीयं तु चतुर्थन्तु विदारणः।।
सिंहास्यः पञ्चमं चैव षष्ठं कशिपुमर्दनः ।
सप्तमं रिपुहन्ता च अष्टमं देववल्ल्भः ।।
प्रह्लादराजो नवमं दशमं द्वादशात्मकः ।
एकादशं महारुद्रो द्वादशं करुणानिधिः।।
एतानि द्वादश नामानि नृसिंहस्य महात्मनः।
मंत्रराजेति विख्यातं सर्वपापहरं शुभम् ।।
ज्वरापस्मारकुष्टादितापज्वरनिवारणं ।
राजद्वारे तथा मार्गे संग्रामेषु जलान्तरे ।।
गिरिगव्यहरगोव्ये व्याघ्रचोरमहोरगे ।
आवर्तनं सहस्त्रेषु लभते वाञ्छितं फलम् ।।
।।श्रीब्रह्मपुराणे ब्रह्मनारदसम्वादे श्रीलक्ष्मीनृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रं सम्पूर्णं।।
#मंगल और #बृहस्पति ग्रह
ये लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र श्री "ब्रह्मपुराण" के ब्रह्मनारद सम्वाद से लिया गया है इस के एक हजार पाठ करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
मंगल ग्रह की पीड़ा हो, बार बार छोटी बड़ी चोट लग रही है, ब्लड इन्फेक्शन हो रहा हो, शरीर मे रक्त विकारों से दाने या त्वचा संबंधी विकार हो रहे हों, तो इस द्वादश नाम का पाठ करना चाहिए।
गुरु मंगल की कष्टकारक युति में भी इस स्तोत्र का पाठ विधि पूर्वक करने बहुत लाभ होता है।
इसके ऊपर के चार श्लोक ही द्वादशनाम हैं नीचे के दो श्लोक फलश्रुति हैं तो इस फलश्रुति को जब आप लगातार पाठ के समय समापन वाले पाठ करते समय पढ़ें।
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फलश्रुति
ज्वरापस्मारकुष्टादितापज्वरनिवारणं ।
राजद्वारे तथा मार्गे संग्रामेषु जलान्तरे ।।
गिरिगव्यहरगोव्ये व्याघ्रचोरमहोरगे ।
आवर्तनं सहस्त्रेषु लभते वाञ्छितं फलम् ।।
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